प्राचीन
साहित्य, श्रीमद्भगवत पुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों के अनुसार एक बार
त्वष्टा नाम का एक प्रजापति था जिसका विश्वरूप नाम का एक धर्मप्रिय
दिव्य पुत्र था। तीन सिरों का वरदान प्राप्त विश्वरूप आध्यात्मिक
शक्तियों से सम्पन्न एक साधु था जिससे स्वर्ग के राजा इंद्र देव के मन
में भय और असुरक्षा की भावना पैदा हो गई। आवेश में आ कर इंद्र देव ने
एक सदाचारी और अच्छे साधु विरूवरूप को मार डाला। जब प्रजापति त्वष्टा
को इस घटना का पता चला तो वह अत्यंत क्रोधित हो उठे। उन्होंने अपने
प्रिय पुत्र की हत्या का प्रतिशोध लेने के लिए यज्ञ का आयोजन किया।
यज्ञ की अग्नि से त्वष्टा को एक और पुत्र प्राप्त हुआ जिसका नाम
उन्होंने वृत्रासुर रखा। वृत्रासुर के जीवन का एकमात्र लक्ष्य था इंद्र
को ध्वस्त करके अपने भाई की हत्या का प्रतिशोध लेना।
वृत्रासुर ने घोर तपस्या की जिसके परिणामस्वरूप उसे सर्वोत्तम वरदान
मिल गया। इस वरदान के अनुसार उस समय तक का जाना गया कोई हथियार उसे
नहीं मार सकता था। वह न तो किसी गीली चीज से मर सकता था और न ही सूखी
से। वह न तो लकड़ी से मरेगा और न ही धातु से, उसे यह भी वरदान प्राप्त
था कि युद्ध में उसकी शक्तियां बढ़ती ही जाएंगी। इस प्रकार के वरदान
प्राप्त करके वृत्रासुर इंद्र और देवलोक के विरुद्ध युद्ध करने लगा।
उसने देवराज इंद्र को बुरी तरह पराजित कर दिया। परिणामस्वरूप इंद्र
अपने ऐरावत हाथी को छोड़कर युद्ध के मैदान से भाग खड़ा हुआ। वृत्रासुर
ने इंद्रलोक पर अपना अधिकार जमा लिया और इंद्र को भाग कर भगवान शंकर
की शरण में जाने को मजबूर कर दिया। भगवान शंकर ब्रह्मा जी को साथ
लेकर विष्णु जी से सहायता के लिए गए। विष्णु जी ने उन्हें परामर्श
दिया कि पहले उन्हें वृत्रासुर को मित्र बनाकर उसका विश्वास जीतना
चाहिए और उसे उस समय मारना चाहिए जब वह अपनी सुरक्षा के प्रति
लापरवाह हो। विष्णु जी ने उन्हें यह भी परामर्श दिया कि उन्हें देवी
से प्रार्थना करनी चाहिए जिससे कि वह अपनी योगमाया से वृत्रासुर की
विचाार करने की बौद्धिक योग्यता को प्रभावित करके क्षीण कर दे।
देवराज इंद्र ने वैसा ही किया जैसा कि विष्णु जी ने समझाया था और
परिणामस्वरूप देवी मां से आशीर्वाद प्राप्त कर लिया।
इसके उपरांत इंद्र ने वृत्रासुर से मित्रता गांठ ली और एक बार जब
वृत्र समुद्र तट पर सोया हुआ था, उस समय इंद्र ने समुद्र की झाग को
इकट्ठा किया क्योंकि झाग न गीली थी न सूखी, न लकड़ी थी न कोई धातु अतः
उसे निश्चित ही कोई अस्त्र-शस्त्र नहीं माना जा सकता था। समुद्री झाग
को अस्त्र-शस्त्र के रूप में प्रयोग करने की नियत से इंद्र ने देवी
से निवेदन किया कि वह समुद्री झाग में प्रवेश करे ताकि इस प्रकार से
बने अस्त्र-शस्त्र से वह वृत्रासुर को मार सके। जब देवी ने झाग में
प्रवेश कर लिया तो इंद्र ने उसे अपने वज्र पर लपेट लिया। वज्र इंद्र
का प्रिय और भंयकर अस्त्र-शस्त्र था जो दधीची ऋषि द्वारा दी गई
अस्थियों से बना हुआ था। अपने इस वज्र से इंद्र ने वृत्रासुर को वहीं
पर मार दिया। इस प्रकार देवताओं को दुष्ट वृत्रासुर से मुक्ति मिल गई।
देवताओं ने देवी की प्रशंसा और स्तुति की जिन्होंने अपने वचनों का
पालन करते हुए संकट की घड़ी में देवताओं की वृत्रासुर को मारने में
सहायता की।
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