श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड
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शुंभ और निशुंभ की कथा

श्रीमद भगवत पुराण की कथाओं से ज्ञात होता है कि शुंभ और निशुंभ नामक दो दुष्ट शक्तियों वाले असुर भाइयों ने ब्रह्मा से यह वरदान प्राप्त कर लिया कि वे सिवाय किसी स्त्री के किसी भी नर से नहीं मारे जाएं चाहे नर कोई मत्स्य या पशु पक्षी ही क्यों न हो। उन्होंने यह सोच कर यह वरदान प्राप्त किया कि वे सदैव के लिए जीवित रहेंगे क्योंकि वे ऐसी किसी नारी को नहीं जानते थे जो इतनी शक्तिशाली हो कि उन दोनों भाइयों को लड़ाई में मार सके। इस तरह शक्ति सम्पन्न हो कर इन दुष्ट आत्माओं ने तपस्या कर रहे साधु संतों की तपस्या में बाधा डालना और उन्हें सताना आरम्भ कर दिया। उन्होंने अन्य किसी देवी-देवता की उपासना के बजाय उन दोनों भाइयों की पूजा करने के लिए कहना शुरु कर दिया। देवताओं ने यह जानकर कि वे उन दोनों भाइयों को पराजित नहीं कर सकते, उन्होंने देवी के दिए हुए वचन को याद दिलाया कि जब कभी भी वे निवेदन करेंगे तो वह उनकी सहायता के लिए आएंगी। सभी देवगण मिलकर देवी की स्तुति करने लगे कि आप सर्वशक्तिमान हैं, ब्रह्माण्ड के सभी जीवों की प्रत्येक भावना और निवेदन में निवास करती हैं।

जब देवता इस तरह स्तुति में तल्लीन थे, माता पार्वती उनके पास से गुजर रहीं थी। जब देवों की प्रार्थनाएं उनके कानों में पड़ीं तो उनको देवों पर दया आ गई। तब उन्होंने अपने शरीर से ही एक अन्य देवी का सृजन कर दिया जो कौशिकी नाम से प्रसिद्ध हुई। देवी के इस रूप में आने के बाद पार्वती का रंग काला पड़ गया। इस से देवी पार्वती का नाम कालिका भी पड़ा। देवी पार्वती द्वारा उत्पन्न की गई देवी कौशिकी अत्याधिक सुंदर थी। जब असुर भाइयों शुंभ और निशुंभ के सेवक चण्ड और मुण्ड ने कौशिकी के सौंदर्य को दृष्टि भर कर देखा तो उन्होंने उसकी सुंदरता का वर्णन अपने स्वामियों से कर दिया। उसके सौंदर्य के बारे में सुन कर दोनों असुर भाइयों ने देवी को उनसे विवाह करने के लिए प्रस्ताव भेज दिया। देवी ने कहा कि उसने शपथ ग्रहण कर रखी है कि वह उस व्यक्ति से विवाह करेगी जो उसे युद्ध में पराजित करके बलपूर्वक ले जाए। इस तरह देवी ने दोनों को युद्ध के लिए उकसा दिया। शुंभ और निशुंभ ने इस सुंदर नारी को पराजित करने के लिए सबसे पहले अपने कुशल सेनापतियों के नेतृत्व में बहुत बड़ी सेना भेजी। इस सेना के पराजित हो जाने पर उन्होंने चण्ड और मुण्ड को भेजा। उन्हें भी देवी ने महाकाली का रूप धारण करके पराजित कर दिया। चण्ड और मुण्ड नामक असुरों को मारने के कारण देवी चामुण्डा के नाम से प्रसिद्ध हुई। 

जैसे जैसे लड़ाई और अधिक भयानक होती गई इस लड़ाई में देवी की सहायता के लिए सात देवताओं के शरीर से सात शक्तियां यानि देवियां प्रकट हुई। चण्ड और मुण्ड के मारे जाने के बाद रक्तबीज नामक महाबलशाली असुर युद्ध करने के लिए आया। रक्तबीज को एक अदभुत वरदान मिला हुआ था कि उसके रक्त की जितनी भी बूंदें जमीन पर गिरेंगी उनसे उसी के समान बलशाली उतने ही और असुर पैदा हो जाएंगे। जब देवी के वार से जख्मी रक्तबीज के रक्त की बूंदें जमीन पर गिरती तो उससे उतने ही और रक्तबीज पैदा हो जाते। यह देख कर देवी ने रक्तबीज को मारने के लिए काली से कहा कि वह रक्तबीज के रक्त की बूंदों को जमीन पर गिरने से पूर्व ही चाट ले ताकि और रक्तबीज पैदा न हों। इस तरह देवी ने रक्तबीज का संहार कर दिया। इसके साथ ही सभी देवियों ने मिलकर निशुंभ और उसकी सेना को भी मार गिराया। जब शुंभ दे देखा कि उसे अकेला कर दिया गया है तो वह देवी को चिढ़ाने लगा कि वह अकेली उसे हराने में सफल नहीं हो सकी तो उसने उसे हराने के लिए सात अन्य देवियों की सहायता ली। इस से देवी अत्याधिक क्रुद्ध हो गई और उसने सभी शक्तियों को अपने आप में समाहित कर लिया और अकेले ही दुष्ट असुर शुंभ को मार दिया। इस तरह संसार को दुष्ट असुरों से मुक्त कर दिया।

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