पवित्रतम स्थल तक पहुंचने के रास्ते में एक छोटे से आंगन की तरह का उभरा
हुआ ढांचा है जिसके दाईं ओर गुफा का मुंह है। यह मूल गुफा है जो
पिण्डियों की तरफ जाती है। पुराने समय में यात्री पवित्रतम स्थल तक जाने
के लिए इसी गुफा का उपयोग करते थे। आजकल यह गुफा वर्ष के अधिक समय तक
बंद रखी जाती है क्योंकि यह गुफा बहुत तंग है। पवित्रतम स्थल तक पहुंचने
में अकेले आदमी को भी इसे पार करने में कई मिनटों का समय लग जाता है।
इसलिए अधिक यात्रियों को दर्शन की सुविधा देने के लिए दो नई गुफाओं (टन्नलों)
को उपयोग में लाया जाने लगा है। एक टन्नल प्रवेश के लिए प्रयुक्त होती
है जो सीधे पवित्रतम स्थल तक ले जाती है। दूसरी टन्नल दर्शन करने के
बाद बाहर निकलने के लिए प्रयुक्त होती है। प्राचीन मूल गुफा को कम भीड़
के दिनों में या परंपरागत त्यौहारों या अनुष्ठानिक अवसरों पर खोला जाता
है। इस गुफा में से माता रानी का दर्शन करना एक बिलकुल अलग तरह का
अनुभव होता है और इस दिव्य आशीर्वाद का आनंद लेने के लिए इच्छुक
यात्रियों को सुझाव दिया जाता है कि वे अपनी यात्रा की योजना उन दिनों
में बनाएं जिन दिनों भीड़ कम होती है।
जब यात्री वास्तविक गुफा का स्थल पार कर लेता है तो वह एक गलियारे में
पहंुच जाता है, जिसकी छत पर अनेक घंटियां लटकती दिखती हैं। कुछ एक गज
चलने के उपरांत यात्री एक खुले प्लेटफार्म तक पहुंचते हैं जहां माता के
वाहन (सवारी) शेर की मूर्ति लगाई गई है और माता की सम्पूर्ण मूर्ति
मंदिर में रखी गई है। यही टन्नल का प्रवेश है।
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