जैसा
कि राम जी ने भविष्यवाणी की थी , उनकी महिमा दूर दूर तक फैल गई। और
झुण्ड के झुण्ड लोग उनके पास आशीर्वाद लेने के लिए उनके आश्रम में आने
लगे। समय बीतने पर महायोगी गुरु गोरखनाथ जी जिन्होंने बीते समय में
भगवान राम और वैष्णवी के बीच घटित संवाद को घटते हुए देखा था, वह यह
जानने के लिए उत्सुक हो उठे कि क्या वैष्णवी आध्यात्मिक उच्चता को
प्राप्त करने में सफल हुई है या नहीं। यह सच्चाई जानने के लिए उन्होंने
अपने विशेष कुशल शिष्य भैरव नाथ को भेजा। आश्रम को ढूंढ कर भैरव नाथ ने
छिप कर वैष्णवी की निगरानी करना आरम्भ कर दिया और जान गया कि यद्धपि वह
साधवी है पर हमेशा अपने साथ धनुष वाण रखती है, और हमेशा लंगूरों एवं
भंयकर दिखने वाले शेर से घिरी रहती है। भैरव नाथ वैष्णवी की आसाधारण
सुंदरता पर आसक्त हो गया। वह अपनी सारी सद्बुद्धि को भूलकर , वैष्णवी
पर विवाह के लिए दबाव डालने लगा। इसी समय वैष्णवी के परम भक्त श्रीधर
ने सामूहिक भण्डारे का आयोजन किया जिसमें समूचे गांव और महायोगी गुरु
गोरखनाथ जी को उनके सभी अनुयायियों को भैरव नाथ सहित निमंत्रण दिया गया।
सामूहिक भोज के दौरान भैरव नाथ ने वैष्णवी का अपहरण करना चाहा परंतु
वैष्णवी ने भरसक यत्न करके उसे झिंझोड़ कर धकेल दिया। अपने यत्न में
असफल रहने पर वैष्णवी ने पर्वतों में पलायन कर जाने का निर्णय कर लिया
ताकि बिना किसी विघ्न के अपनी तपस्या कर सके। फिर भी भैरो नाथ ने उसने
लक्ष्य स्थान तक उनका पीछा किया।
आजकल के बाणगंगा, चरणपादुका और अधकुआरी स्थानों पर पड़ाव के बाद अंततः देवी पवित्र
गुफा मंदिर जा पंहुची। जब भैरों नाथ ने देवी का;े संघर्ष से बचने के उनके प्रयासों
के बावजूद पीछा करना न छोड़ा तो देवी भी उसका वध करने के लिए विवश हो गई। जब माता
गुफा के मुहाने के बाहर थीं तो उन्होंने भैरों नाथ का सिर धड़ से अलग कर दिया और
अंततः भैरों नाथ मृत्यु को प्राप्त हुआ। भैरों नाथ का सिर दूर की पहाड़ी चोटी पर
धड़ाम से गिरा। अपनी मृत्यु के समय भैरों नाथ ने अपने उद्धेश्य की व्यर्थता को पहचान
लिया और देवी से क्षमा प्रार्थना करने लगा। सर्वशक्तिमान माता को भैरों नाथ पर दया
आ गई और उन्होंने उसे वरदान दिया कि देवी के प्रत्येक श्रद्धालु की देवी के दर्शनों
के बाद भैरों नाथ के दर्शन करने पर ही यात्रा पूर्ण होगी। इसी बीच वैष्णवी ने अपने
भौतिक शरीर को त्याग देने का निर्णय किया और तीन पिण्डियों वाली एक शिला के रूप में
परिवर्तित हो गई और सदा के लिए तपस्या में तल्लीन हो गईं।
इस तरह तीन सिरों या तीन पिण्डियों वाली साढे पांच फुट की लम्बी शिला स्वरूप वैष्णवी
के दर्शन श्रद्धालुओं की यात्रा का अंतिम पड़ाव होता है। इस तरह पवित्र गुफा में ये
तीन पिण्डियां पवित्रतम स्थान है। यह पवित्र गुफा माता वैष्णो देवी जी के मंदिर के
रूप में विश्व प्रसिद्ध है और सभी लोगों में सम्मान प्राप्त कर रही है।
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