दुष्ट
आत्मा महिषासुर का जन्म रम्भा के महिषी (भैंस) से सम्पर्क से हुआ जिसके
परिणामस्वरूप वह आधा पुरुष और आधा भैंसा था। अग्नि देव से वरदान
प्राप्त करने के परिणामस्वरूप वह दुष्ट और भी अधिक शक्तिशाली हो गया।
इस वरदान के अनुसार उसकी मृत्यु स्त्री के हाथों ही हो सकती थी। उसने
देवलोक और स्वर्ग के सभी देवों को उनका पीछा करते हुए भगा दिया और उसने
स्वर्ग में अपना आंतक फैला दिया। तब सभी देवता भगवान विष्णु और भगवान
शिव के पास गए। वे ही जानते थे कि महिषासुर को कोई स्त्री ही मार सकती
है। उन्होंने सभी देवों के सामूहिक तेज , योग शक्तियों के संयोग से देवी
का सृजन करने का निर्णय लिया। इस प्रकार सभी देवों के तेज या शक्तियों
के संयोग से एक देवी शक्ति उत्पन्न हुई। सभी देवों की शक्तियां इस देवी
में समाहित हो गई। उसके हाथों में शिव का त्रिशूल, विष्णु का चक्र,
हिमालय से शेर और वायु से धनुष और बाण आ गए। सभी देवों की सामूहिक
शक्तियों से सम्पन्न और देवों के क्रोध से भरी भंयकर हो उठी देवी ने
दुष्ट आत्मा महिषासुर को काबू कर लिया। देवी की क्रोध भरी दृष्टि ही
दुष्टों को भगा देती है। देवी को देखते ही सभी असुर भाग जाते हैं।
दूसरी ओर महिषासुर ने उसके विरुद्ध हिंसक लड़ाई को भड़का दिया। वह भैंसे,
शेर, तलवार लिए मनुष्य, हाथी और अंत में फिर भैंसे का रूप धारण करके
देवी से युद्ध करता रहा। यह युद्ध दस हजार वर्षों तक चलता रहा और
अंततः देवीे महिषासुर को त्रिशूल के वार से गिराने में सफल हो गई और
उन्होंने उसका सिर काट दिया। दुष्ट आत्मा महिषासुर से छुटकारा पाकर
देवता प्रसन्न हुए और देवी की असंख्य प्रकार से प्रशंसा और स्तुति
करने लगे। सभी देवताओं ने श्रद्धापूर्वक देवी की प्रार्थना की कि जब
जब भी देवों पर संकट आएं तब तब वह प्रकट होकर देवों के कष्टों का
निवारण करें। देवों को ऐसा ही वरदान देती हुई तथास्तु कह कर,
श्रद्धापूर्वक बुलाने पर पुनः प्रकट होने के लिए देवी विलुप्त हो गईं।
|