काल
के आरम्भ में चारों ओर समुद्र ही समुद्र था। विष्णु जी योगनिद्रा के
प्रभाव में शेष नाग पर क्रियाहीन होकर गहरी निद्रा में सो रहे थे। जब
भगवान विष्णु सोए हुए थे तो उनकी नाभि से एक कमल नाल अंकुरित हो कर बड़ा
हो गया। कमल नाल के उपरी सिरे पर कमल का फूल उगा। उस कमल के फूल में
ब्रह्मा जी पैदा हुए और पैदा होते ही गहन तपस्या में लीन हो गए। जब कमल
के फूल में बैठ कर ब्रह्मा जी वेदों का उच्चारण करते हुए गहरी तपश्चर्या
में लीन थे, विष्णु के दोनों कानों से कान का मैल बाहर निकल आया।
कानों से निकले मैल से मधु और कैटभ नाम के दो
असुर पैदा हुए। इन असुरों ने हजारों वर्ष तक घोर तप किया। उनकी तपस्या
से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें दर्शन दिया और इच्छा मृत्यु का वरदान
दिया। अपनी अत्याधिक शक्ति के प्रति सचेत होकर दोनों असुर अंहकारी हो
गए। उन्होंने ब्रह्मा पर आक्रमण कर दिया और उनसे चारों वेद छीन कर ले
गए। ब्रह्मा उन असुरों की प्रचण्ड शक्ति के सामने असहाय हो गए, इसलिए
बहुत घबराहट में वह विष्णु जी से सुरक्षा पाने के लिए दौड़ पड़े।
विष्णु जी योगनिद्रा के प्रभाव में गहरी निद्रा
में सोए हुए थे, जो ब्रह्मा जी के पूरे यत्नों के बाद भी नींद से न
जागे। जब ब्रह्मा जी ने जान लिया कि वह योगनिद्रा में सो रहे विष्णु
को साधारण तरीके से नहीं जगा सकते तो उन्होंने योगनिद्रा की निवेदन
पूर्वक स्तुति की कि वह विष्णु जी को जगाने में उनकी सहायता करे। तब
ब्रह्मा जी की भावपूर्ण प्रार्थनाओं से योगनिद्रा प्रसन्न हो गई।
उन्होंनें ब्रह्मा जी के निवेदन पूर्ण कर्म पर दया की और विष्णु के
शरीर को अपने प्रभाव से मुक्त कर दिया। ज्यों ही योगनिद्रा ने विष्णु
जी के शरीर को अपने प्रभाव से मुक्त किया, विष्णु जी जाग पड़े। ब्रह्मा
जी ने उन्हें मधु और कैटभ के घातक उद्धेश्यों के बारे में बताया और
उन्हें नष्ट करने के लिए उनसे निवेदन किया। इस तरह भगवान विष्णु ने
दोनों असुरों से भंयकर और लम्बा युद्ध करके उन्हें मार दिया।
मधु कैटभ के इस प्रसंग में देवी दुर्गा को योगमाया के रूप में
चित्रित किया गया है। योगमाया (देवी दुर्गा) का शक्तिशली प्रभाव
भगवान विष्णु तक को असहाय कर देता है। |