अधिकतर
प्राचीनतम पवित्र मंदिरों की यात्राओं की तरह ही यह निश्चित कर पाना
असंभव ही है कि इस पवित्र मंदिर की यात्रा कब आरम्भ हुई। गुफा के भू-वैज्ञानिक
अध्ययन से पता चलता है कि इस पवित्र गुफा की आयु लगभग एक लाख वर्ष की
है। वैदिक साहित्य किसी स्त्री देवता की पूजा की ओर संकेत नहीं करता
जबकि चारों वेदों में प्राचीनतम ऋग्वेद में त्रिकुट पर्वत का संदर्भ
मिल जाता है। शक्ति की आराधना की रीति अधिकतर पौराणिक काल से आरम्भ हुई
है।
देवी माता का सबसे पहला वर्णन महाभारत में हुआ है। जब पाण्डव और कौरव
कुरूक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में अपनी सेनाओं का ब्यूह बनाए हुए थे,
श्री कृष्ण के परामर्श पर पाण्डवों के प्रमुख सेनानी अर्जुन ने देवी
माता का ध्यान लगाया और युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए आशीर्वाद
मांगा। जब अर्जुन ने देवी माता का ध्यान लगाया और उनसे निवेदन किया
तो उन्हें ‘जम्बूकातम चित्यायशु नित्यम सन्निहत्यालय‘ कहा जिसका
अभिप्राय है कि आप सदैव से जम्बू जो संभवतः आज कल के जम्मू को
संदर्भित करता है; के पहाड़ की तलहटी के मंदिर में रहती आ रहीं हैं।
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