श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड
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पवित्र मंदिर का इतिहास

अधिकतर प्राचीनतम पवित्र मंदिरों की यात्राओं की तरह ही यह निश्चित कर पाना असंभव ही है कि इस पवित्र मंदिर की यात्रा कब आरम्भ हुई। गुफा के भू-वैज्ञानिक अध्ययन से पता चलता है कि इस पवित्र गुफा की आयु लगभग एक लाख वर्ष की है। वैदिक साहित्य किसी स्त्री देवता की पूजा की ओर संकेत नहीं करता जबकि चारों वेदों में प्राचीनतम ऋग्वेद में त्रिकुट पर्वत का संदर्भ मिल जाता है। शक्ति की आराधना की रीति अधिकतर पौराणिक काल से आरम्भ हुई है।

देवी माता का सबसे पहला वर्णन महाभारत में हुआ है। जब पाण्डव और कौरव कुरूक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में अपनी सेनाओं का ब्यूह बनाए हुए थे, श्री कृष्ण के परामर्श पर पाण्डवों के प्रमुख सेनानी अर्जुन ने देवी माता का ध्यान लगाया और युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए आशीर्वाद मांगा। जब अर्जुन ने देवी माता का ध्यान लगाया और उनसे निवेदन किया तो उन्हें ‘जम्बूकातम चित्यायशु नित्यम सन्निहत्यालय‘ कहा जिसका अभिप्राय है कि आप सदैव से जम्बू जो संभवतः आज कल के जम्मू को संदर्भित करता है; के पहाड़ की तलहटी के मंदिर में रहती आ रहीं हैं।


साधारण रूप से यह भी विश्वास किया जाता है कि पाण्डवों ने ही सबसे पहले देवी माता के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा को प्रकट करते हुए कौल कंडोली और भवन मेें मंदिर बनवाए। त्रिकूटा पहाड़ के बिलकुल साथ लगते एक पहाड़ पर पवित्र गुफा को देखते हुए पांच पत्थरों के ढांचे पांच पाण्डवों के प्रतीक हैं।
किसी इतिहास प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा पवित्र गुफा की यात्रा का शायद प्राचीनतम वर्णन गुरू गोविन्द सिंह जी के प्रति मिलता है जो कहा जाता है कि पुरमण्डल के रास्ते पवित्र गुफा तक पंहुचे। पवित्र गुफा को जाने वाला पुराना रास्ता इस बहुत प्रसिद्ध तीर्थ स्थल से होकर जाता था।
कुछ परम्पराओं में इस पवित्र गुफा मंदिर को शक्ति पीठों (वह स्थान जहां देवी माता यानी अनंत ऊर्जा का आवास है) में सर्वाधिक पवित्र माना जाता है क्योंकि सती माता का सिर यहां गिरा है । कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार लोग यह मानते हैं कि यहां सती माता की दायीं भुजा गिरी थी। परंतु कुछ पाण्डुलिपियां इस विचार से सहमत नहीं हैं , वहां यह माना गया है कि सती की दायीीं भुजा कश्मीर में गांदरबल के स्थान पर गिरी थी। निःसंदेह श्री माता वैष्णो देवी जी की पवित्र गुफा में मानवीय भुजा के पत्थर के अवशेष देखे जा सकते हैं, जो वरदहस्त के रूप में प्रसिद्ध है। (हाथ जो वरदान और आशीर्वाद देता है।)



     माता वैष्णो देवी जी की कथा भी देखें

 
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