श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड
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दर्शन

त्रिकुटा पर्वत, जहां पर माता का मंदिर और पवित्र गुफा स्थित है परम चेतना के आयाम खोलने वाला द्वार है। त्रिकुटा पर्वत, नीचे से एक और ऊपर से तीन चोटियों वाला है जिसके कारण उसे त्रिकूट भी कहा जाता है। त्रिकुटा पर्वत देवी माता के स्वरूप को ही प्रतिबिंबित करता है। पवित्र गुफा में वह प्राकृतिक शिला के रूप में है जो नीचे से एक ही शिला है और ऊपर तीन चोटियां सिरों के रूप में हैं। एक चट्टान की ये तीन चोटियां पवित्र पिण्डियां कही जाती हैं और देवी माता के प्रतीक स्वरूप पूजी जाती हैं। पूरी चट्टान जल में डूबी हुई है और उसके गिर्द संगमरमर का चौंतड़ा बना दिया गया है। प्रमुख दर्शन तीनों पवित्र पिण्डियों के ही हैं। इन पवित्र पिण्डियों की विशेषता यह है कि यद्धपि यह तीनों पिण्डियां एक ही चट्टान से बनी हैं परंतु प्रत्येक पिण्डी रंग और छवि में दूसरी पिण्डियों से भिन्न विशिष्टता रखती है।

महाकाली

श्रद्धालु के दायीं ओर विध्वंस की सर्वोच्च ऊर्जा माता महाकाली की पिण्डी काले रंग की है। महाकाली के नाम के साथ ही काला रंग जुड़ा हुआ है। विध्वंस की सर्वोच्च ऊर्जा महाकाली है। वह तम गुण का प्रतिनिधित्व करती है। तम गुण अंधकार और जीवन के अज्ञात से जुड़ी विशेषता है। तम का अर्थ है अंधकार। मनोविज्ञान और विज्ञान के अनुसार समूचे ब्रह्माण्ड का बहुत कम प्रतिशत चेतन है शेष सब अभी अवचेतन या अचेतन ही है। ये अज्ञात सत्ता जीवन के सभी रहस्यों से भरी पड़ी है। सृजन एक व्यवस्था है जो समय विशेष में मौजूद रहती है जबकि ऊर्जा समय की सीमा बाधा को पार कर जाती है वही ऊर्जा अनंत समय- महाकाली है। मनुष्य का जीवन के प्रति ज्ञान बहुत सीमित है और वह जीवन के प्रति अधिकतर अंधकार में रहता है। काला रंग इसी अज्ञात को प्रस्तुत करता है जो माता काली से सम्बद्ध है। वह सब जो जो रहस्यमय है और मनुष्य के लिए अज्ञात है, माता महाकाली उस सब का मूल स्रोत है। अपने महाकाली के रूप में देवी माता अपने श्रद्धालुओं को लगातार अंधकार की शक्तियों से जीतने के लिए प्रेरित करती हैं और राह दिखाती हैं।

महालक्ष्मी

मध्य में माता महालक्ष्मी जी की पीतांबर-हल्के लाल रंग की छवि वाली पवित्र पिण्डी है। यह माता महालक्ष्मी से सम्बद्ध रंग है। महालक्ष्मी भरण पोषण और प्रबन्धन की सर्वोच्च ऊर्जा है। यह राजस गुण का प्रतिनिधित्व करती है। राजस गुण प्रेरणा और कर्म का गुण है और यह गुण धन, सम्पदा , सांसारिक सुख, लाभ और जीवन स्तर की मूल ऊर्जा मानी जाती है। धन और सम्पन्नता सोने से प्रतिबिंबित किए जाते हैं। सोने का रंग भी पीला होता है और इसलिए यह रंग माता महालक्ष्मी से सम्बद्ध है।

 

महासरस्वती

दर्शक के बाईं ओर वाली पिण्डी को माता महासरस्वती के रूप में पूजा जाता है। माता महासरस्वती निर्माण की सर्वोच्च ऊर्जा है। ध्यानपूर्वक देखने पर यह पिण्डी श्वेत रंग की दिखाई पड़ती है। श्वेत रंग महासरस्वती से सम्बद्ध रंग माना जाता है। सृजन की सर्वोच्च ऊर्जा महासरस्वती है। माता सरस्वती सृजन, ज्ञान, बुद्धिमता, सदाचार, कला, अध्ययन, पवित्रता और निर्मलता की द्योतक है। माता महासरस्वती सत्व गुण यानि पवित्रता के गुण का प्रतिनिधित्व करती है।

श्री माता वैष्णो देवी जी को इन तीनों सर्वोच्च ऊर्जाओं का अवतार माना जाता है।
 

ऊपर बताए तीनों गुणों के सभी प्राणियों में अंश रहते हैं और उनके व्यवहार इन्हीं गुणों से निश्चित होते हैं। उनके स्वभाव में विद्यमान ये गुण उनके स्वभाव को संचालित करते हैं। परंतु एक सार्थक जीवन जीने के लिए तीनों गुणों में उचित संतुलन का होना आवश्यक है । पवित्र गुफा इन तीनों ऊर्जाओं का स्रोत है। पवित्र गुफा इन शक्तियों को उत्पन्न करने में प्राणी को सहायता देती है और दुर्लभ संतुलन को स्थापित करने में प्राणी की सहायता करती है। यही वह तथ्य है जो माता वैष्णो देवी जी की पवित्र गुफा को समूचे संसार में विशिष्ट बनाता है।

यह दुबारा बता दें कि पवित्र गुफा के भीतर शिला में बनी प्राकृतिक पिण्डियों के रूप में माता जी के दर्शन होते हैं। भीतर कोई बुत, मूर्ति या चित्र नहीं है। सारे रास्ते में और भवन पर अनेक चित्र लगे हुए हैं जो गुफा के भीतर होने वाले दर्शन के रूप को समझाने के लिए लगाए गए हैं। यात्रियों को इन्हें ध्यान से देखना चाहिए क्योंकि ये चित्र उन्हें गुफा के भीतर पिण्डी दर्शन को समझाने के उद्धेश्य से ही लगाए गए हैं। जबकि पवित्र गुफा में तीन पिण्डियों के दर्शन ही मूल दर्शन हैं। गुफा में अन्य दर्शन भी हैं।

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पवित्र गुफा के अतिरिक्त भवन के क्षेत्र में अन्य दर्शनों के लिए यहां दबाएं।
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