भवन की पौराणिक कथा
यह विश्वास किया जाता है कि अद्धकुआरी की गर्भजून में जब भैरों नाथ
ने उन्हें ढंूढ लिया तो वैष्णवी ने स्थान छोड़ दिया और पवित्र गुफा तक
पहुंचने तक वह पर्वत की चढ़ाई चढ़़ती गइंर् परंतु उनके पीछे पड़े हुए
भैरोंनाथ ने उन्हें फिर से गुफा के भीतर देख लिया और ललकारने लगा।
इसलिए अंततः देवी ने अपना दिव्य रूप धारण कर लिया और भैरोंनाथ का सिर
काट दिया। उनकी तलवार के वार में इतनी ताकत थी कि भैरों नाथ का सिर
उड़ कर 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पहाड़ की अन्य चोटी पर जा गिरा,
जहां आजकल भैरों मंदिर है। जबकि उसका धड़ पवित्र गुफा के द्वार पर ही
गिरा पड़ा रहा। उसके बाद देवी मां गुफा के भीतर पवित्रतम स्थल पर गहन
साधना में डूब गईं जहां उनके पिण्डी रूप में पवित्र प्रतीक स्थित
हैं।
पवित्र भवन श्रद्धालुओं के लिए श्रद्धा सम्मान का मुख्य केन्द्र है
और समूचे यात्रा घेरे की प्रमुख कुंजी है। इसलिए श्राइन बोर्ड द्वारा
श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए उपयुक्त प्रबंध और सुविधाएं निर्मित की
गई हैं। जिनमें मुफ्त और किराए पर मिलने वाले भोजनालय, आवास, शौचालय,
डाकघर, बैंक, संचार साधन, घोषणा केन्द्र, कम्बल स्टोर, सामान रखने के
लिए क्लॉक रूम, चिकित्सा केन्द्र( आई सी यू की सुविधा सहित), जनरल
स्टोर, भेंटों की दुकानें, पुलिस स्टेशन आदि प्रमुख हैं।
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